Sunday, June 9, 2019

मन तो है




बेतरतीब सी जो भागती थी कलम
आज बगावत पर है
जुबां भी शिकायत पर है
काश लिख दूँ आज कोई ऐसी नज़्म
हो जाए अमर ये काठ की कलम 

मन तो है, तुझे समंदर सा लिखूँ
ज़ुल्फ़ों को तेरी घटाओं सा लिखूँ
आँखों को तेरी किताब सा लिखूँ
हंसी को तेरी बहार सा लिखूँ
होंठों को तेरे शराब सा लिखूँ
खुश्बू को तेरी गुलाब सा लिखूँ
आवाज़ को तेरी तराना सा लिखूँ
मन तो है ......!!

मन तो है, हर जनम तुझे अपना सा लिखूँ
नींद का हसीन सपना सा लिखूँ
सर्दियों में गरम चादर का मखमली एहसास सा लिखूँ
रातों में चाँदनी रात सा लिखूँ
नदियों में निर्मल गँगा सा लिखूँ
ऋतुओं में कोमल वसंत सा लिखूँ
मन तो है.......!!

-कुमार

No comments:

Post a Comment