Wednesday, June 12, 2019

मैं ज़िन्दगी खुली किताब हूँ







मैं ज़िन्दगी एक खुली किताब हूँ
या कह लो तुम्हारे अनसुलझे सवालों का जवाब हूँ

ज़िन्दगी की वीणा से निकला
एक अधूरा साज़ हूँ
मैं ज़िन्दगी एक खुली किताब हूँ

आँखों में छुपाये हूँ दरिया पानी का
फिर भी बुझती नहीं वो प्यासी आग हूँ
मैं ज़िन्दगी एक खुली किताब हूँ

पाले हैं जाने कितने तूफाँ दिल में
फिर भी लहरों से टूटी एक छोटी सी नाव हूँ
मैं ज़िन्दगी खुली किताब हूँ ।

-कुमार

No comments:

Post a Comment