Wednesday, June 12, 2019

निशब्द:

वो स्याह रात के अंधियारे में
दिल के सूने गलियारों में
स्नेह की ज्योत जलाने आयी थी।

दरवाजे पर दस्तक थी
चरमोत्कर्ष पर धड़कन थी
पंख लगे थे पैरों में
हलके हलके क़दमों से, सर झुकाये
तब वो अंदर आयी थी
फिर चुपके से बैठ निकट
मंद मंद मुस्काई थी ।


मैं बैठा रहा पशोपेश में
उलझी रही वो भी भँवर में
रात के उस आखिरी पहर में
नज़रों से नज़रें टकराई थीं
फिर न उसकी झुकी पलकें
न नज़रों ने मेरी आराम लिया

और वो रात ठहरी रही, यूँ ही
निशब्द: .........!!

-कुमार

No comments:

Post a Comment