Thursday, March 21, 2019

ख्वाब




एक हसीं ख्वाब लिखूँ या
एक रंगी शाम लिखूँ
रातों का वो शबाब लिखूँ या
शामों का वो जाम लिखूँ



क्या तेरी मुस्कान बहार लिखूँ या
दिल को मेरे बेक़रार लिखूँ
आँखों को तेरी शराब लिखूं या
खुद को शराबी बीमार लिखूँ

क्या तुझे मैं अपना लिखूँ या
इस जनम भी तुझे उधार लिखूँ

-कुमार

चल पड़ा हूँ मैं







कर रक्त, स्वेद, सब संचित
कर पुरुषार्थ, साहस सब अर्जित
हो तलवार, ढाल, तीर कमान से सुस्सजित
चल पड़ा हूँ मैं

राह की दुश्वारियों से
चाल समय की से
हो अंजान मंजिलों से
चल पड़ा हूँ मैं

जो कोई न मेरे साथ है तो
नयी क्या ये बात है तो
चाल सूर्य की अलग है
चाल चंद्र की अलग है
मैं भी अपनी चाल में मदमस्त हो
चल पड़ा हूँ मैं

सूर्य से आभाएँ लूंगा
चंद्र से शीतलता लूंगा
सीख है पर्वत की शिखर पे रहना
लहरों सा हो निरंतर हो
पवन सा बेतरतीब बन
चल पड़ा हूँ मैं


-कुमार