कर रक्त, स्वेद, सब संचित
कर पुरुषार्थ, साहस सब अर्जित
हो तलवार, ढाल, तीर कमान से सुस्सजित
चल पड़ा हूँ मैं
राह की दुश्वारियों से
चाल समय की से
हो अंजान मंजिलों से
चल पड़ा हूँ मैं
जो कोई न मेरे साथ है तो
नयी क्या ये बात है तो
चाल सूर्य की अलग है
चाल चंद्र की अलग है
मैं भी अपनी चाल में मदमस्त हो
चल पड़ा हूँ मैं
सूर्य से आभाएँ लूंगा
चंद्र से शीतलता लूंगा
सीख है पर्वत की शिखर पे रहना
लहरों सा हो निरंतर हो
पवन सा बेतरतीब बन
चल पड़ा हूँ मैं
-कुमार
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